यूपी के मेडिकल कॉलेज में मानवता शर्मसार हो गई जब डॉक्टरों ने टीबी से चिंताजनक हालात में पीड़ित की उसके 14 वर्षीय मासूम से सहमति लेकर 5 जून को छुट्टी कर दी। दो दिन बाद इलाज के अभाव में पिता ने मासूम की गोद में दम तोड़ दिया। मेडिकल कॉलेज के पोस्टमार्टम हाउस में 18 दिन तक लावारिस शव के सड़ने की जांच अभी चल ही रही थी कि रविवार को मानवता को शर्मसार करने वाला एक और मामला सामने आ गया। डॉक्टरों ने वार्ड नंबर छह में भर्ती उरई निवासी सुनील गुप्ता की चिंताजनक हालत में नाबालिग बेटे से सहमति लेकर पांच जून को छुट्टी कर दी।
कॉलेज परिसर के आश्रय स्थल में ही टीबीग्रस्त मरीज दो दिन तक पड़ा रहा, लेकिन इलाज न मिलने की वजह से शनिवार की रात दम तोड़ दिया। उधर, इस मामले की जानकारी मिलते ही आननफानन कॉलेज प्रशासन ने जांच टीम गठित कर दी। तीन जूनियर डॉक्टरों को नोटिस देकर जवाब तलब किया गया है।
सुलगते सवाल –
जब हालत चिंताजनक थी तो क्यों सहमति पत्र लिखवाकर वार्ड से निकाला ?
नाबालिग की सहमति से गंभीर मरीज को घर भेजने का निर्देश किसने दिया ?
जब रोगी सही हो जाता है तो डिस्चार्ज करते समय सहमति की जरूरत नहीं पड़ती। ऐसे में सवाल है कि जानते-बुझते डॉक्टर ने रोगी को क्यों डिस्चार्ज किया ?
वार्ड के बाहर कोई मरता है तो इमरजेंसी में भेजकर पुलिस को सूचना देनी पड़ती है, इस मामले में सूचना क्यों नहीं दी गई ?
जब आश्रय स्थल पर रोगी मर गया तो उसका शव सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉक में क्यों रखवाया गया ?
मूल रूप से उरई के तुलसी नगर निवासी सुनील गुप्ता (45) करीब 14 साल से झांसी के बड़ागांव गेट बाहर मुहल्ले में रह रहा था। वह सुभाषगंज में मुनीम का काम कर आजीविका चलाता था। वह क्षय रोग (टीबी) से पीड़ित था। इसके चलते तीन जून को उसकी हालत बिगड़ गई। सुनील को पत्नी पिंकी गुप्ता अपने 11 वर्षीय पुत्र वंश गुप्ता व चार वर्षीय बेटी के साथ मेडिकल कॉलेज में लेकर आई। इमरजेंसी के डॉक्टरों ने उपचार के बाद सुनील को वार्ड नंबर छह में भर्ती करा दिया।
मिन्नतें करता रहा नाबालिग बेटा लेकिन डॉक्टरों का दिल नहीं पसीजा: चार जून को पिंकी अपनी बेटी के साथ लापता हो गई। उधर, परेशान बेटा वंश अपने पिता की सेवा करने के साथ मां को भी तलाशता रहा। पांच जून को अचानक डॉक्टरों ने सुनील को घर ले जाने के लिए कहा। पिता की चिंताजनक हालत देख वंश ने डॉक्टरों से पिता का इलाज जारी रखने और घर न भेजने की मिन्नतें कीं, उनका दिल नहीं पसीजा। उल्टा अपने बचाव के लिए मरीज के नाबालिग बेटे से सहमति पत्र लिखवाकर अंगूठे का निशान भी लगवा लिया। इसके बाद पिता-पुत्र को वार्ड से बाहर कर दिया गया। असहाय नाबालिग बेटा अपने पिता को लेकर वार्ड के सामने बने आश्रय स्थल पर चला गया। वहां उपचार न मिलने से शनिवार की रात पिता की मौत हो गई। बेटे की सूचना पर रात तीन बजे उसकी बुआ ग्वालियर से मौके पर पहुंची। इसके बाद, शव को पैतृक आवास उरई लेकर गई। वहां रविवार दोपहर दो बजे अंतिम संस्कार कर दिया गया।
चश्मदीद बोले, बालक रोता रहा मगर किसी ने ध्यान नहीं दिया –
जिस आश्रय स्थल में सुनील गुप्ता ने दम तोड़ा, वहां ठहरे तीमारदारों ने बताया कि पिता की चिंताजनक हालत देख नाबालिग बेटा रोता रहता था। वंश ने बताया था कि डॉक्टरों ने वार्ड से भगा दिया है। पिता का उपचार करने से इन्कार कर दिया है। यही नहीं, कोई दवा भी नहीं दी है। वहां मौजूद लोगों ने बताया कि जब पिता की मौत हो गई, तब वंश ने फोन से ग्वालियर में रहने वाली बुआ को मदद के लिए बुलाया।
तीन जूनियर डॉक्टर और सिस्टर इंचार्ज से होगी पूछताछ –
मेडिकल कॉलेज के एसआईसी डॉ. सचिन माहुर ने बताया कि उस वक्त वार्ड नंबर छह में तैनात रहे जेआर डॉ. शिवम, डॉ. विनायक, डॉ. सांची और सिस्टर इंचार्ज से पूछताछ की जाएगी। पता किया जाएगा कि आखिर किस वजह से गंभीर हालत में रोगी को डिस्चार्ज किया गया। यह मामला काफी गंभीर है। दोषियों पर सख्त कार्रवाई होगी।