यूपी में बिजली का निजीकरण मार्च 2026 के पहले नहीं हो सकेगा। पावर कार्पोरेशन ने नियामक आयोग को मल्टी ईयर टैरिफ के नए प्रारूप में दक्षिणांचल और पूर्वांचल के निजीकरण का कोई जिक्र नहीं किया है। विद्युत नियामक आयोग में पावर कार्पोरेशन की ओर से वर्ष 2025-26 के लिए दाखिल वार्षिक राजस्व आवश्यकता (एआरआर) पर तकनीकी सत्यापन सत्र की बैठक हो गई है। इस बैठक में पूर्वांचल और दक्षिणांचल के निजीकरण पर कोई बात नहीं हुई है। अन्य कंपनियों की तरह ही इन दोनों कंपनियों ने भी वार्षिक लेखा-जोखा का शपथ पत्र दिया है। ऐसे में ऊर्जा विभाग की नियमावली के तहत मार्च 2026 तक निगमों का निजीकरण नहीं किया जा सकता है।प्रदेश की सभी बिजली कंपनियों की वार्षिक राजस्व आवश्यकता (एआरआर) वर्ष 2025-26 को दाखिल कर दिया गया है। मल्टी इयर टैरिफ रेगुलेशन 2025 के तहत दाखिल एआरआर करीब 1.10 लाख करोड़ का है। इसमें पूर्वांचल ने 28120 करोड़ और दक्षिणांचल ने 23009 करोड़ का वार्षिक राजस्व आवश्यकता दाखिल किया है। सभी बिजली कंपनियों ने आयोग को अपने लेखा-जोखा के संबंध में शपथ पत्र भी दे दिया है। नियामक आयोग में बुधवार को तकनीकी सत्यापन सत्र (टीवीएस)की बैठक भी हो गई। पावर कार्पोरेशन ने नियामक आयोग को मल्टी ईयर टैरिफ के नए प्रारूप में दक्षिणांचल और पूर्वांचल के निजीकरण का कोई जिक्र नहीं किया है। दक्षिणांचल व पूर्वांचल द्वारा विद्युत नियामक आयोग को अवगत कराया जा चुका है कि उनके द्वारा वर्ष 2025-26 के लिए अपना व्यवसाय किया जाएगा। ऐसे में अब मार्च 2026 तक विद्युत अधिनियम 2003 के प्रावधानों के तहत कानूनन निजीकरण नहीं किया जा सकता है। क्योंकिजल्द ही विद्युत नियामक आयोग वार्षिक राजस्व आवश्यकता को स्वीकार करके बिजली दरों को लेकर सुनवाई शुरू करेगा।सुनवाई के बाद नहीं हो सकता है बदलावउत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि टीवीएस की बैठक के बाद निजीकरण नहीं किया जा सकता है। अन्य कंपनियों की तरह ही दक्षिणांचल एवं पूर्वांचल ने भी आय- व्यय का ब्यौरा दाखिल कर दिया है। यह मार्च 2026 तक के लिए है। ऐसे में विद्युत अधिनियम 2003 के प्रावधानों के तहत कानूनन निजीकरण नहीं किया जा सकता है।